मूवी रिव्यू: ब्लडी डैडी

फ्रेंच फिल्मों के प्रति बॉलिवुड के फिल्मकार पहले भी आकर्षित होते रहे हैं। भेजा फ्राई, डू नॉट डिस्टर्ब, हे बेबी, नौटंकी साला, शंघाई, तेरा सुरूर, कारतूस जैसी कई फिल्में हैं, जो फ्रेंच फिल्मों पर आधारित या प्रेरित रही हैं। इस बार निर्देशक अली अब्बास जफर शाहिद कपूर के साथ ओटीटी की जिस ब्लडी डैडी के साथ पेश हुए हैं, वो 2011 में आई फ्रेंच फिल्म स्लीपलेस नाइट की अडॉप्टेशन है। इसी फिल्म पर तमिल में तूंगा वनम बन चुकी है। तूंगा वनम में कमल हासन और प्रकाश राज की मुख्य भूमिकाएं थीं। मगर मानना पड़ेगा कि अडॉप्टेशन होने के बावजूद अली अब्बास जफर ने अपनी ब्लडी डैडी में शाहिद के पागलपन को एक्शन और थ्रिल के हाई ऑक्टेन शैली में पेश किया है।

'ब्लडी डैडी' की कहानी (Bloody Daddy Story)फिल्म की शुरुआत बहुत ही थ्रिलर अंदाज में होती है, जहां नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो का अंडर कवर अफसर सुमेर (शाहिद कपूर) अपने साथी जीशान सिद्दीकी के साथ ड्रग्ज की 50 करोड़ की खेप जब्त करने के सीक्रेट ऑपरेशन पर निकलता है। वह ड्रग्ज हासिल कर भी लेता है, मगर गड़बड़ तब होती है, जब ड्रग्ज माफिया के गुंडे उसे देख लेते हैं। अब सूरते हाल ये है कि ड्रग माफिया का सरगना सिकंदर (रोनित रॉय) सुमेर के बेटे अथर्व को अगुवा कर लेता है और शर्त रखता है कि उसका बेटा उसे तभी वापिस मिल सकता है, जब वह उसका ड्रग्ज लौटाएगा। सुमेर का अपनी पत्नी से तलाक हो चुका है और बेटे केअपहरण का कांड तब होता है, वह उसके साथ छुट्टियां बिताने आया हुआ था। सुमेर ड्रग्ज के साथ सिकंदर के होटल में पहुंचता है। वह ड्रग्ज को लेडीज टॉयलेट में छिपा देता है और सिकंदर के पास यह सुनिश्चित करने जाता है कि उसका बेटा सुरक्षित है। बेटे की सिक्योरिटी पर आश्वस्त होने के बाद जब वह ड्रग्ज लेने दोबारा लेडीज टॉयलेट में पहुंचता है, तब तक ड्रग्ज वहां से गायब हो चुका होता है। असल में सुमेर के डिपार्टमेंट की ही अदिति (डायना पेंटी) होटल तक उसका पीछा करते हुए आई थी और उसने ड्रग्ज दूसरी जगह छिपा दिए थे। यह बात वह अपने बॉस समीर (राजीव खंडेलवाल) के साथ शेयर करती है, इस बात से अनजान कि उसका बॉस दूध का धुला नहीं है। इसके बाद शुरू होता है, ड्रग्ज को हासिल करने का खूनी खेल। क्या सुमेर ड्रग्ज का पता लगाकर अपने बेटे को वापिस हासिल कर पाएगा? क्या अदिति अपने बॉस की असलियत जान पाएगी? इन सवालों के जवाब आपको फिल्म पर मिलेंगे।

'ब्लडी डैडी' का रिव्यू (Bloody Daddy Review)गुंडे, सुल्तान और टाइगर जिंदा है जैसी फिल्मों के निर्देशक अली अब्बास जफर की यह फिल्म भले फ्रेंच फिल्म स्लीपलेस नाइट का अडॉप्टेशन है, मगर वे दमदार कलाकारों के साथ अबू धाबी के गुरुग्राम होटल में अजीबोगरीब, खौफनाक, साजिशें करने वाले ऐसे किरदारों की दुनिया रचते हैं, जिसके बहाव में आप भी बहते जाते हैं। फिल्म का फर्स्ट हाफ काफी कसा हुआ और थ्रिलर इंपैक्ट के साथ आपको एक ऐसे इंटरवल पॉइंट पर लाकर छोड़ता है, जहां आप सेकंड हाफ देखने के लिए उत्सुक हो उठते हैं। मध्यांतर के बाद अली अब्बास जफ़र ने एक्शन पर ज्यादा जोर रखा है। यह फिल्म का स्ट्रांग पॉइंट भी है। इस मामले में फिल्म एक रोलर कोस्टर राइड साबित होती। एक्शन को अलग अंदाज में कोरियोग्राफ किया गया है। शाहिद कपूर और राजीव खंडेलवाल का फाइट सीन सांसों को तेज करने वाला बन पड़ा है, मगर फिर इंटरवल के बाद फिल्म का स्क्रीनप्ले कमजोर पड़ जाता है। फिल्म का बैकग्राउंड स्कोपर दमदार है। डायलॉग चरित्रों के मुताबिक स्लैंग हैं। फिल्म में कुछ लाइट मोमेंट भी हैं, जो माहौल में तनाव पैदा करने के साथ-साथ हंसाते भी हैं।

ओटीटी शाहिद कपूर (Shahid Kapoor) के लिए शुभ साबित हुआ है। फर्जी जैसी सीरीज में खूब सारी तारीफें बटोरने वाले शाहिद ने इस बार भी अपने किरदार में कोई कमी नहीं छोड़ी है। फिल्म के शीर्षक के मुताबिक़ सुमेर ब्लडी भी है मगर साथ ही वह डैडी भी है। एक क्रूर, हिंसक और क्रेजी अंडरकवर एजेंट अपनी ड्यूटी और बेटे को बचाने के लिए किस हद तक तबाही ला सकता है, इसे दर्शाने में शाहिद जरा भी नहीं चूके। शाहिद के अलावा फिल्म में सिकंदर की भूमिका अदा करने वाले रोनित रॉय का अभिनय मजेदार है। हमीद बने संजय कपूर और रोनित रॉय कहानी में कई कॉमिक पंचेज जोड़ने में कामयाब रहे हैं। डायना पेंटी की भूमिका को और ज्यादा विस्तार दिया जाना चाहिए था। छोटी-सी भूमिका में जीशान कादरी याद रह जाते हैं। राजीव खंडेलवाल ने जानदार अभिनय किया है, मगर उन्हें ज्यादा स्क्रीनस्पेस नहीं मिल पाया है। अन्य कलाकारों में विवान भटेना, अंकुर भाटिया और बाल कलाकर ने अच्छा काम किया है।

'ब्लडी डैडी' क्यों देखें?क्यों देखें -शाहिद कपूर की परफॉर्मेंस और एक्शन फिल्मों के शौकीन यह फिल्म देख सकते हैं।

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